Sankalpm sanskrit book bhag 2 चतुर्थः पाठ: मतिः एव बलात् गरीयसी

 Sankalpm sanskrit book bhag 2 चतुर्थः पाठ

एक जंगल में एक तालाब था। तालाब के तट पर खरगोश बिल में रहते थे। एक बार वर्षा की कमी से जंगल के जीव दुखी हो गए। एक हाथी का झुण्ड अपने सरदार से बोला- "सरदार, जल के अभाव के कारण हम सब परेशान हैं। आप शीघ्र कोई उपाय सोचिए।" सरदार ने कहा, "तुम सब चिन्ता मत करो। मैं जंगल में पानी से भरा हुआ तालाब खोजूँगा।"


 सरदार ने जंगल में उस तालाब को देखा जिसके तट पर खरगोश रहते थे। हाथियों का झुण्ड उस तालाब को देखकर खुश हुआ। वे प्रतिदिन तालाब में आकर पानी पीते और जल-क्रीड़ा करते । तत्पश्चात् बाहर आकर तट पर इधर-उधर घूमते जिससे कई खरगोश मर गए। बचे हुए खरगोश दुखी रहने लगे। परिवार को दुखी देखकर एक वृद्ध खरगोश बोला- "तुम सब चिन्ता मत करो। मैं अपने बुद्धिबल से हाथियों को दूर भेज दूँगा।" 

एक दिन हाथियों का झुण्ड वहाँ नहाने के लिए आया सूर्यास्त के समय वह बूढ़ा खरगोश पहाड़ पर चढ़कर बैठ गया। जब हाथी वहाँ आए तब वह जोर से बोला- “अरे दुष्ट हाथियो! मैं चन्द्रमा का दूत हूँ। उनका कहना है कि मैं खरगोश को पुत्र के समान पालता हूँ। उनको मैं अपनी गोदी में रखता हूँ इसलिए मेरा एक नाम 'शशांक' भी है। तुमने अपने पैरों से खरगोशों को मारा है। मैं बहुत क्रोधित हूँ जल्द तुम सबको दण्ड दूँगा।" डरे हुए सरदार ने दूत से कहा- "यह सब अज्ञानता में हुआ। भविष्य में ऐसा अपराध नहीं होगा। अब हमारे लिए क्या आज्ञा है।" तब मुसकराते हुए खरगोश ने कहा- "तुम सब अपना कल्याण चाहते हो तो यहाँ से दूर चले जाओ। यहाँ कभी मत आना।" उसने जल में काँपते हुए चन्द्रमा को दिखाया। सबने अपना सूँड उठाकर चन्द्रमा को प्रणाम किया और वहाँ से चले गए। 

सच ही कहा गया है-बुद्धि बल से बड़ी होती है।


एकपदेन उत्तरत-

1- शशकाः

2-  गजसमूह:

3-  जलक्रीडार्थं

4- चन्द्रदेवस्य दूतं

5- चन्दप्रतिबिम्बम्



प्रश्न के उत्तर लिखिए- 


1- वर्षायाः अभावात् वन्यजन्तवः दुःखिताः अभवन् ।

2- प्रसन्नाः गजाः प्रतिदिनं जले प्रविश्य जलपानं जलक्रीडां च कुर्वन्ति स्म।

3- परिवारं दुःखी विलोक्य विजयः नाम वृद्धः शशकः अवदत् - यूयं मा चिन्तयत। अहं स्वबुद्धिकौशलेन गजान् दूरं करिष्यामि।

4- स्वामी चन्द्रदेवस्य सन्देशः अस्ति यत् यदि यूयं कल्याणं वाञ्छ्थ तर्हि अस्मात् स्थानात् दूरं गच्छत। पुनः अत्र कदापि न आगमिष्यथ ।


3- भयभीत: यूथपतिः दूतम् अवदत् - हे मित्र? अज्ञानेन वयं एवम् अकुर्म। न पुनः भविष्यति एषः अपराधः । इदानीम् का आज्ञा अस्मभ्यम् ?

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