#सप्तम: पाठ: चौरस्य चातुर्यम्
प्रथमं दृश्यम्
सूत्रधारः
सूत्रधार (मंच पर प्रवेश करके )-इस नगर में कोई चोर है। वह हमेशा सत्य बोलता है। वह बहुत ही बुद्धिमान है। एक बार वह रात में किसी धनी के घर में चोरी करने जाता है । तब क्या होता है ,यह होता है स्वयं देखो (style="color: #2b00fe;">
(रंगमंच पर दो द्वारपाल खड़े हैं चोर दोनों के सामने ही द्वार में प्रवेश करता है। )
पहला द्वारपाल
चोर
( द्वारपाल चकित होकर एक दूसरे का मुख्य देखते हैं। इतने में ही चोर बिना बाधा के घर में प्रवेश करता है।)
दूसरा द्वारपाल-
पहला द्वारपाल
(दोनों पुनः द्वार की रक्षा में लग गए। थोड़ी देर बाद चोर चोरी करके वस्तुओं को पोटली में लेकर द्वार से बाहर निकलता है।)
दूसरा द्वारपाल अरे अरे तुम क्या ले जा रहे हो?
चोर सामान ले जा रहा हूंँ ( चला जाता है)
पहला द्वारपाल यह मनुष्य विचित्र है।
दूसरा द्वारपाल धनी का कोई परिचित लगता है।
पहला द्वारपाल तुम सत्य कहते हो (दोनों चले जाते हैं)
द्वितीयं दृश्यम्
सूत्रधार प्रवेश करके हे दर्शकों! धनिक सुबह उठकर घर को देखता है। परेशान होकर वह द्वारपालों को बुलाकर पूछता है। दोनों रात की सभी घटना कहते हैं। धानिक के आदेशानुसार दोनों द्वारपाल किसी तरह चोर को बंदी बना कर लाते हैं। धनिक उसको राजा के समीप लाता है।
( राज सभा।धनिक चोर को राजा के सम्मुख लाता है।)
धनिक -रा
जन इसने मेरे घर में चोरी की है।
राजा अरे चोर क्या तुमने चोरी की है?
चोर हां राजन ।
राजा किस लिए चोरी की?
चोर महाराज वस्तुओं के प्रयोजन के लिए ।
राजा चोरी के बिना तुम उनको उनको नहीं प्राप्त कर सकते? चोर नहीं।
राजा तो धनिक के घर से किस लिए चोरी की?
चोर उसके घर में बहुत वस्तुएं हैं और जो उनके लिए किसी काम की नहीं।
राजा चोरी का फल जानते हो?
चोर कारावास या मृत्युदंड।
राजा (दोनों द्वारपालों से )इसे कारागार में बंद कर दो। (दोनों द्वारपाल उसको ले जाते हैं धनिक चला जाता है।)
तृतीय ं दृश्यम्
(मंच पर कारागार में बंधा हुआ चोर है। राजा मंत्रियों के साथ वहां आते हैं।)
राजा अरे सुनो ! कल सवेरे तुम्हारा सिर काट दिया जाएगा। मरने से पहले कोई भी इच्छा पूरी करना चाहते हो ?
चोर मेरी कोई भी इच्छा नहीं है। केवल एक चिंता है ।
मंत्री क्या चिंता है?
चोर मेरे गुरु ने मुझे एक विद्या सिखाई है।
मंत्री वह कौन सी विद्या है?
चोर सोने की खेती की विद्या।
राजा (व्यंग पूर्वक) सत्यवादी चोर मरने से पहले झूठ बोलता है।
चोर (पैर पकड़ कर )नहीं राजन मैं झूठ नहीं बोलता हूं। किसी को भी विश्वास नहीं होगा। इसीलिए मैं बोलना नहीं चाहता था।
राजा (कुछ पल सोच कर) उचित बोलता है। कहो कौन सी विद्या है?
चोर करके दिखा सकता हूं लेकिन कहकर नहीं।
मंत्री ठीक है ।
चोर उसके लिए थोड़ी सी भूमि ,सोने के बीच और कुछ समय चाहता हूं।
राजा (मंत्री से )जो - जो चाहता है, उसकी व्यवस्था करो।
मंत्री जैसा आदेश।
चतुर्थं दृश्यम्
(मंच पर सभी यथा स्थान बैठे हैं चोर भूमि के बीच में बैठा है। )
चोर राजा आप ही एक बीज बोएँगे।
राजा तुम क्यों नहीं?
चोर क्योंकि मैं चोर हूं। जिसने कभी भी चोरी न की हो वही बीज सकता है। हमारे राजा धर्मात्मा, न्यायप्रिय, सर्वश्रेष्ठ हैं।
आइए ,जल्दी सूर्योदय हो जाएगा।
राजा( अपने आप) मैंने बचपन में चोरी की थी । (सबसे) नहीं मैं नहीं बो सकता। मैंने बचपन में बहुत बार लड्डू चुराए थे।
चोर तो महामंत्री बोएँ, वह ज्ञानी और वृद्ध हैं।
महामंत्री( विचार करके )नहीं, नहीं मैं भी नहीं कर सकता। मैंने भी चोरी का कार्य किया है।
चोर महाराज पूजनीय राजपुरोहित जी सदा पूजा-पाठ आदि करते हैं उन्होंने कोई भी पाप नहीं किया होगा।
राजा पंडित श्रेष्ठ आप ही हाथों से बीज बोएँ, आइए।
पुरोहित राजन क्या बताऊं एक बार भूख से पीड़ित होकर मैंने पूजा के फल खाए थे।
चोर महाराज घोषणा करिए जिसने कभी भी चोरी न की हो वह यहां आ जाए ।
राजा आप लोगों में से जिसने कभी भी चोरी ना की हो, वह खेत में आ जाए।
( सभी आपस में एक दूसरे का मुख देखते हैं कोई भी नहीं आता। )
चोर हे देव यदि यहां उपस्थित सभी चोर ही हैं तो केवल एक मुझे ही मृत्युदंड किस लिए दिया जा रहा है। क्योंकि वह सत्य बोलता है?
राजा (हंसकर )तुमने मेरी आंखें खोल दी। सत्य बोलने का पुरस्कार प्राप्त होगा।( सभी से) यह परम सत्यवादी है ,यह मेरा महामंत्री होगा। (सभी तालियां बजाते हैं।)
एकपदेन उत्तरत-
1- चौर:
2- द्वारात्
3- राजसमीपम्
4- काराबद्धं
5-यथास्थानम्
6-पूजाया:
उत्तर पुस्तिका में पूर्ण वाक्य में उत्तर लिखिए।
1. यदा चौरः वस्तूनि गृहीत्वा निर्गच्छति तदा द्वितीयद्वारपालः वदति - अरे, अरे, त्वं किं नयसि?
2. चौरः धनिकानां गृहात् वस्तुभिः प्रयोजनम् चोरयति।
3. राजा चौरस्य कृते व्यङ्ग्येन वदति - सत्यवादी चौरः मरणात् पूर्व मिथ्या वदति।
4. यदा कोऽपि न आगच्छति तदा चौरः वदति - देव! यदि अत्र उपस्थिताः सर्वे चौराः एव सन्ति तर्हि केवलम् एकस्मै मृत्युदण्डः किमर्थं दीयते ? यतोहि सः सत्यं वदति ?
5. राजा चौराय पुरस्कारं यच्छति 'इतः परम् एषः सत्यवादी मम महामन्त्री भविष्यति।
iii- 1- कस्य
2- कस्मिन् समये
3- क:
4- किम्
5- केन्
Iv - 1- द्वितीय द्वारपाल - चौरम्
2- राजा - चौरम्
3- चौरम्: - राजा ं
4- राजा - द्वारपालौ
5- मन्त्री - चौरम्
6- महामन्त्री- चौरम्
V- 1- बुद्धिमान् - चौर:
2- बहूनि -वस्तूनि
3- धर्मात्मा- राजा
4- क्षुधितः - पुरोहितः
5- ज्ञानी- महामन्त्री
Vi- स:
तम्
तेन
तस्मै
तस्मात्
तस्य
तस्मिन्
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