Sankalpm sanskrit book bhag3 कक्षा 8 द्वितीयः पाठ : भावे हि विद्यते देव :

  

     Sankalpm sanskrit book bhag3 कक्षा 8 द्वितीयः पाठ : भावे हि विद्यते देव :

पुरा ----------------------------------- भावः


कक्षा 8                  द्वितीयः पाठ:

                 भावे हि विद्यते देव:




पुरा ------------------------------------भावः हि कारणम्  ।। 


हिन्दी अनुवाद-


पहले समय में विक्रमादित्य नाम के एक राजा हुए। वह विनय शील प्रजा पालक शूरवीर और दान शील थे। एक बार उन्होंने सेवकों को बुलाकर बोला - हे सेवकों! मैं पृथ्वी पर घूमना ( परिभ्रमण करना) चाहता हूं । जहां-जहां आश्चर्य या कोई विशेष तीर्थ स्थान देखो ,तो मुझे आकर बताओ। मैं वहां जाऊंगा। “


तथा समय बीतने पर एक बार कोई सेवक आकर राजा को बताता है – “राजन चित्रकूट पर्वत के निकट तपोवन के बीच में एक देवालय है। वहाँ पर्वतों से स्वच्छ जलधारा गिरती है। वहाँ यदि कोई स्नान करता है तो उसके सारे पापों का नाश हो जाता है, और जो महा पापी है, उसके अंगों से बहुत ही काला जल निकलता है। जो वहाँ स्नान करता है, वह पुण्य पुरुष है। और दूसरी जगह कोई ऋषि विशाल हवनकुण्ड में हवन करते हैं। उनको यह करते हुए कितने वर्ष व्यतीत हो गए हैं? यह कोई नहीं जानता। प्रत्येक दिन कुण्ड से बाहर रखी गयी भस्म पर्वत के आकार की होती है। वह ऋषि किसी से भी नहीं बोलते। इसलिए वह बहुत ही विचित्र स्थान दिखता है। “



यह सुनकर वह राजा अकेले ही उसके साथ उस स्थान पर गया। वहां परम आनंद को प्राप्त करके बोला-“ वाह  यह बहुत ही पवित्र स्थान है। यहां साक्षात देवता निवास करते हैं। यह स्थान देखकर मेरा मन शुद्ध व पवित्र हो गया है। राजा वहां जल में स्नान करके देवता को नमस्कार करके जहां ऋषि हवन करते  थे वहां जाकर ऋषि से बोले – “हे तपस्वी कितने वर्ष पूर्व हवन को आरंभ किया था? ऋषि के शिष्य ने कहा –“राजन इनको होम करते हुए  100 वर्षों से अधिक व्यतीत हो गए हैं, फिर भी देवता प्रसन्न नहीं हुए । 


ऐसा सुनकर राजा ने स्वयं होम कुंड में आहुतियां डाली। फिर भी देवता प्रसन्न नहीं हुए। उसके बाद राजा ने “अपने मस्तक की आहुति दूँगा’ ऐसा विचार कर जैसे ही तलवार को गले पर रखा वैसे ही बीच में देवता ने तलवार पकड़ कर कहा-“ हे राजा! मैं प्रसन्न हूँ, वर मांगो। “ राजा हाथ जोड़कर बोला-‘ हे देव! मैं केवल उत्सुकता पूर्वक पूँछूँगा जो यह ऋषि बहुत समय से हवन करता है ,कोई भी ना अपराध किया है और ना ही नियम को भंग करता है, फिर भी इस ऋषि से किसलिए प्रसन्न नहीं हुए ? मेरे ऊपर किस लिए बहुत गया है-

 देवता ना तो लकड़ी में , ना ही पत्थर में और ना ही मिट्टी   में विद्यमान हैं ,। भाव में ही भगवान बसते हैं, इसलिए  श्रद्धा भाव ही प्रसन्न करने का कारण है।

 

अभ्यास-  कार्याणि

 

I-                 एक पदेन उत्तरत्-

1-   नुचरान्

2-   देवालयः

3-   देवता:

4-   शताधिकवर्षाणि

5-   होमकुण्डे

6-   भावे

II-               उत्तर-

1-   राजा विनयशीलः, प्रजापालक:,शूरवीर:,  दानशीलः च आसीत्।

2-   यदि कोऽपि स्नानं करोति, तर्हि सर्वेषां पापानां नाशः भवति

3-   महापापी यदि स्नानं करोति तस्य अंगात् अतीव कृष्णम् उदकम् निस्सरति।

4-   परमानंदं प्राप्य स: अवदत्-“ अहो! अति पवित्रं स्थानं। अत्र साक्षात् देवताः निवसन्ति। एतत् स्थानं दृष्ट्वा मम मनः पवित्रं शुद्धं च जातम्। “

5-   देव: वदति-“ राजन्! यद्यपि ऋषिः नियमानुसारेण हवनं करोति तथापि अस्य मनसि भावः नास्ति, अतः प्रसन्ना न भवामि। “   

III-         1-  किम्

                    2- कश्चित्

                    3- कस्य

                   4- कुत्र

                   5- कस्मिन्

       

IV-          घटना क्रमानुसार-

1-   पुरा विक्रमादित्यः नाम राजा अभवत्

2-   यत्र- तत्र कौतुकम् तीर्थविशेषं च विलोकयन्, तत् मह्यम् निवेदयन्ति।

3-   तत्र पर्वतात् विमला जलधारा पतति।

4-   एतत् स्थानं दृष्ट्वा मम मनः पवित्रं शुद्धं च जातम्।

5-   यत्र ऋषिः हवनं करोति तत्र गत्वा राजा तम् अवदत्।

6-   तदनन्तरं नृप: ‘स्व आननस्य आहुतिं दास्यामि। ‘ इति विचार्य कण्ठे खड्गं स्थापयति।

7-   अहं प्रसन्ना अस्मि, वरं वृणीष्व।

8-   ऋषेः मनसि भावः नास्ति अतः प्रसन्ना न भवामि।

 

 

V-                  1- देवालयः

     2- पर्वताकार:

    3- देवता:

    4-  होमकुण्डे

    5- पुण्य पुरूष:

 

 

 

VI-           1- प्रजापालक:      -         राजा

2-   अतिमनोहर:   -      देवालयः

3-   विमला        -    जलधारा

4-   कृष्णम्       -     उदकम्

5-   विचित्रं       -       स्थानं 

6 -  कियन्ति      -     वर्षाणि

 

 

 

 

 

 

 

VII-         सही विलोम शब्द

1 - शूरवीर: -  कायर:

2-  आगत्य निर्गत्य

3-  विमला -  मलिना

4 – कृष्णम् -  श्वेतम्

5    - बहिः    -    अन्त:




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3 comments:

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