अष्टम: पाठ: भल्लुकस्य पुच्छं किमर्थं नास्ति ?

      अष्टम: पाठ:

भल्लुकस्य पुच्छं किमर्थं नास्ति ?

हिन्दी अनुवाद

शिक्षणविन्दुः - लोभस्य परिणामम् सदा दुःखदायकम् भवति ।

लोभ का परिणाम हमेशा दुखदाई होता है।


ग्रीष्मावकाशः अस्ति। सायंकाले बालाः उद्यानम् आगत्य परस्परं क्रीडन्ति । एकदा एकः अहितुण्डिकः (मदारी) भल्लुकेन सह तत्र आगच्छति। सः स्वडमरूं वादयति। बाला: डमरूशब्दं श्रुत्वा तत्र आगच्छन्ति। बालसमूहं दृष्ट्वा अहितुण्डिकः भल्लुकस्य नृत्यं प्रदर्शयति । भल्लुकः अपि उत्थाय तस्य निर्देशानुसारं नृत्यं करोति। तस्य नृत्यं दृष्ट्वा सर्वे प्रसन्नाः भवन्ति । नृत्यस्य पश्चात् एकः बालकः अहितुण्डिकं पृच्छति–“भो ! किमर्थं नास्ति भल्लुकस्य पुच्छम्?"

गर्मियों का अवकाश है। शाम के समय बच्चे बगीचे में आकर आपस में खेलते हैं। एक बार एक मदारी भालू के साथ वहां आता है। वह अपना डमरू बजाता है। बच्चे डमरू का शब्द सुनकर वहां आते हैं। बच्चों का समूह देखकर मदारी भालू का नृत्य दिखाता है। भालू भी उसके निर्देश के अनुसार उठकर नृत्य करता है। नृत्य के बाद एक बालक मदारी से पूछता है अरे भालू की पूँछ किस लिए नहीं है?


अहितुण्डिकः चतुरः आसीत्। सः तद्विषये एकां कथां रचयित्वा कथयति । पुरा भल्लुकस्य अपि लम्बं दृढं च पुच्छम् आसीत्। सः तेन सर्वान् वन्यजीवान् पीडयति स्म। को तस्य शृगालः, कुक्कुरः, वनसूकरः च मित्राणि आसन्।


मदारी चतुर था वह उस विषय से संबंधित एक कथा बनाकर सुनाता है। पहले भालू की भी लंबी एवं मजबूत पूँछ थी। वह जंगल के सभी पशुओं को पीड़ा पहुंचाता था। जंगल में सियार कुत्ता एवं जंगली सूअर के साथ उसकी मित्रता थी। 

एकदा शीतरात्रौ अतिहिमः अपतत्। कुत्रापि भोजनं न आसीत्। शृगालः कुक्कुरः सूकरः च आहाराय अगच्छन्। ते कुत्रापि मत्स्यान् गृहीत्वा आनयन्। तदैव भल्लुकः आगत्य अवदत्- "अहो, अहम् अपि भृशं क्षुधितः अस्मि।" शृगालः अकथयत्-' -"मित्र ! वयं मिलित्वा मत्स्यान् विभजामः । "परं भल्लुकः सर्वान् मत्स्यान् एकलः एव अखादत् । 

एक दिन ठंड की रात्रि में बर्फ बहुत ज्यादा गिरी । कुछ भी भोजन नहीं था। सियार कुत्ता और सूअर भोजन के लिए गए । वे कहीं से मछलियां पकड़ कर लाए। तभी भालू आकर बोला-  अरे मैं भी बहुत भूखा हूं। सियार ने कहा मित्र हम सब मिलकर मछलियां बांट लेंगे। परंतु भालू ने सभी मछलियां अकेले ही खा ली।

भल्लुकस्य व्यवहारेण सर्वे दुःखिताः अभवन् । परं चतुरः शृगालः प्रतिशोधाय संकल्पम् अकरोत् । सः तस्य समीपं गत्वा स्नेहेन अवदत्- “मित्र ! यदि त्वं मत्स्यान् इच्छसि तर्हि मया सह आगच्छ।" लोभी भल्लुकः शृगालेन सह अगच्छत् । शृगालः बहुदूरं गत्वा हिमे एकं गर्तम् अकरोत् भल्लुकं च अवदत् - "मित्र ! अत्र नीचैः बहवः मत्स्याः सन्ति । त्वं गर्ते पुच्छं निधाय शान्तभावेन उपविश। श्वः प्रभाते यदा पुच्छं दृढं भविष्यति, तदा एकं, द्वे, त्रीणि गणयित्वा पुच्छं बलेन कर्षिष्यसि । सर्वे मत्स्याः बहिः आगमिष्यन्ति ।"

भालू के व्यवहार से सभी दुखी हुए। परंतु चालाक सियार ने प्रतिशोध लेने का संकल्प किया। वह उसके पास जाकर प्रेम पूर्वक बोला-  मित्र यदि तुम ज्यादा मछलियां खाना चाहते हो तो मेरे साथ आओ। लोभी भालू उसके साथ चला गया। सियार ने बहुत दूर जाकर बर्फ में एक गड्ढा किया और भालू से बोला मित्र यहाँ नीचे बहुत सी मछलियां है। तुम गड्ढे में पूछ कर के शान्त भाव से बैठ जाओ। कल सुबह जब  तुम्हारी पूंछ भारी हो जाए सब एक,दो  तीन गिन कर जोर से खींचना सारी मछलियां बाहर आ जाएंगी।

लोभी भल्लुक: तथैव करोति । रात्रौ हिमपातः भवति। हिमः मन्दं मन्दं पुच्छस्य उपरि दृढं भवति। सः एकान्ते चिन्तयति — “श्वः प्रभाते बहून् मत्स्यान् प्राप्स्यामि, एकलः एव खादिष्यामि।"

लोभी भालू ने वैसा ही किया। रात में हिमपात होता है। बर्फ धीरे-धीरे पूछ के ऊपर मजबूत होती हैं वह एकांत में सोचता है कल सुबह बहुत सी मछलियां प्राप्त करूंगा और अकेले ही खाऊंगा।

प्रभातः भवति। दूरात् एव शृगालः पृच्छति-"मित्र भल्लुक! पुच्छं भारि अस्ति न वा ?" भल्लुकः प्रसन्नतया प्रतिवदति- “ आम्, आम्। मम पुच्छं बहुभारि अस्ति।" शृगालः हसित्वा कथयति- “तर्हि, एकं, द्वे, त्रीणि गणयित्वा कर्ष, बलेन कर्ष। अद्य सर्वे मत्स्याः तव एव भविष्यन्ति ।"

सुबह होती है । दूर से ही सियार पूछता है मित्र भालू पूछ भारी हुई कि नहीं? बालू प्रसन्नता पूर्वक बोलता है हां हां मेरी पोस्ट भारी है। सियार हंसकर कहता है 123 गिन कर खींचो बलपूर्वक खींचो आज सारी मछलियां तुम्हारी ही होंगी।

भल्लुकः दीर्घं निःश्वस्य गणयति-- एकं, द्वे, त्रीणि पूर्णवलेन च कर्षति । तस्य मुखं रक्तं भवति। सः पुनः बलेन कर्षति । अकस्मात् 'टक' इति शब्दः भवति । भल्लुकः भूमौ पतति। सः उत्थाय पृष्ठे मत्स्यान् पश्यति। एकम् अपि मीनं न पश्यति । पुनः यदा पश्यति तदा स्वपुच्छं न दृष्ट्वा सः चिन्तयति – “अहो, एतत् किम् ?कुत्र मम पुच्छं?" सः वारं-वारं भ्रमित्वा पुच्छम् अन्वेषयति परं पुच्छं न पश्यति। वराकः भल्लुकः लज्जया वनं प्रति अगच्छत् । तदा पर्यन्तम् एव भल्लुकस्य वंशे कस्यापि पुच्छं न भवति ।

भालू लंबी सांस खींचकर गिनता है -एक, दो,तीन  और पूरे बल से खींचता है। उसके मुख में खून आ जाता है। वह फिर से बल लगाकर खींचता है। अचानक 'टक' यह शब्द होता है। बालू भूमि पर गिर जाता है। वह उठकर पीछे मछलियों को देखता है। एक भी मछली नहीं दिखती। फिर से जब पीछे देखता है तब उसकी अपनी पूँछ नहीं देखकर वह चिंता करता है-  अरे ! यह क्या? मेरी पूँछ कहाँ है। वह बार-बार घूम कर पूँछ को खोजता है। परंतु पूँछ दिखाई नहीं देती। बेचारा भालू लज्जा पूर्वक जंगल की ओर चला जाता है। उसके बाद से ही भालू के वंश में कभी भी पूछ नहीं होती है।

इति कथयित्वा अहितुण्डिकः तूष्णीं भवति। बालाः तस्मै पणकं, रूप्यकं, अन्नानि च यच्छन्ति । अहितुण्डिकः डमरूशब्दं कृत्वा अग्रे गच्छति।

ऐसा कहकर मदारी चुप हो जाता है। बच्चे उसको रुपया, पैसा और अनाज देते हैं। मदारी डमरू बजाता हुआ आगे चला जाता है।



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