sankalpam sanskrit book of class 7 solutions
संकल्पम् भाग 2 द्वितीयः पाठ: सर्पमूषकयो : कथा
1-एकस्मिन ग्रामे..................... बद्धम् अकरोत ।
अनुवाद - एक गाँव में दुरान्त नाम का एक शिकारी था। वह प्रतिदिन जंगल जाकर पशु और पक्षियों को मार कर और उसे बेंचकर अपने परिवार का पालन पोषण करता था।
एक बार जब वह जंगल गया तब वहाँ उसे एक भी पशु और पक्षी नहीं मिला। निराश होकर शाम को जब वह घर लौट रहा था , तब अचानक रास्ते में उसे एक साँप दिखा । उसने सोचा यदि" मैं इसे मार कर घर ले जाऊॅगा," लेकिन वह सोचता है कि- मृत साँप कोई भी नहीं खरीदेगा। यह विचार कर वह दुरान्त साँप की पूंछ पकड़कर घर ले आया और उसे एक पेटी में बंद कर दिया ।
2- एकस्मिन दिने.................. निर्गमिष्यावः ।
अनुवाद - एक दिन संयोगवश से एक चूहा उस पेटी में घुस गया। साँप को देखकर चूहा डर गया। साँप भूखा था। सामने चूहे (भोजन) को देखकर उसके पेट में भी चूहा दौड़ने लगा। उसने सोचा यह चूहा तो पेटी को काट सकता है। जब यह पेटी में छेद कर देगा तब मैं बाहर निकल जाऊँगा और चूहे को खा जाऊँगा । वह प्यार से चूहे से बोला मैं भी यहाँ बंद हूँ और तुम भी यहाँ बंद हो । अरे! मित्र मेरे मन में एक उपाय है। तुम यदि यह उपाय करोगे, तब हम दोनों का जीवन सुरक्षित हो जाएगा । चूहा उसके प्यारे वचनों को सुनकर बोला- "क्या उपाय है ?जल्दी बताओ "।साँप कहता है-" तुम पेटी को काटने में समर्थ हो ,इसलिए पहले तुम पेटी को काट दो तब हम दोनों यहाँ से बाहर निकल जाएंगे ।
3- मूषकः तं....................... महात्मनाम् ।
अनुवाद - चूहा उससे संदेह से भरी नजर से देखता है। साँप चालाक था। वह उसके मनोभाव को जानकर बोला-" मित्र, डरो मत। मेरे ऊपर विश्वास करो। मैं तुम्हारा घनिष्ठ मित्र हूँ।"
चूहा साँप की बात पर विश्वास करके जैसे ही पेटी में छेद करता है ,साँप उसे क्रूरता से खा लेता है ।और उसके बाद पेटी से बाहर निकल जाता है।
सच ही कहा गया है -
"दुष्टों के मन ,वाणी एवं कर्म में भिन्नता रहती है ।पर सज्जनों के मन, वाणी और कर्म में समानता रहती है ।
sankalpam sanskrit book of class 7 पाठ2
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